Quotes by Divya Prakash Dubey

Divya Prakash Dubey's insights on:

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चिट्ठी भेजूँगी न तुम्हें , बताओगे नहीं मिश्रा जी “ जैसे ही उसने मिश्रा जी बोला ऐसा लगा मम्मी पापा से किसी चीज की जिद कर रही हो । मम्मी को जब भी अपनी कोई चीज मनवानी होती है पापा से तो वो उनको मिश्रा जी ही बोलती हैं ।
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कई बार रद्दी में पुराने खोये हुए दिन चाय के निशाँ के साथ मिल जाते है और हम ऐसे ही न जाने कीतनेे दिन रद्दी में कोड़ी के भाव से बेच देते है।
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गलतियाँ सुधारनी जरुर चाहिए लेकिन मिटानी नहीं चाहिए। गलतियाँ वो पगडंडियाँ होती है जो बताती रहती हैं कि हमने शुरू कहाँ से किया था।
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IIT वालों का ऐसे तो दुनिया भर में तमाम चीजें बनाने को लेकर बड़ा नाम है लेकिन हिंदुस्तान में IIT में पढ़ने वाले वाले लड़के मुहल्ले भर के लड़के-लड़कियों को कभी motivate करने तो कभी जलील करने के काम भी आते हैं। motivate ऐसे ही कि “फलाने भईया को देखो IIT से पढ़ें हैं और अब अमरीका में dollar में लाखों कमाते हैं , तुम भी मेहनत करो और भईया जैसे बनो” और जलील ऐसे कि “मिश्रा जी के लड़के का फिर नहीं हुआ IIT में, दो साल से कोचिंग कर रहा था , कमजोर है पढ़ने में
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इंजीन्यरिंग के तीन साल पूरे होते होते सबको अपनी औकात समझ में आने लगती है । कई लोगों को समझ में आ चुका होता है कि इंजीन्यरिंग उनके लिए नहीं थी
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आँसू बड़े अजीब होते हैं अक्सर रिश्ते टूटते वक़्त अपनी शक्ल दिखाते हैं तो कभी कभार आँसू रिश्ते की शुरुवात करते हैं
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कुछ गलतियाँ सही करते ही और भी गलत हो जाती हैं
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यशवी ऐसे ही रोज़ नये सवालों के साथ बड़ी होने लगी और दुनिया वही सवाल सुन सुन कर बूढ़ी होने लगी
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इसके बाद न जाने कितनी ही बार तरुण और नितिन ने साथ में दारू पी लेकिन वो नौकरी लगने वाली दारू की उस बोतल के पैसे आज भी तरुण पर उधार हैं। 10 सालों में वक़्त लंबी दूरी तय कर चुका है । तरुण अब Mr.T.K.Purohit हो चुका है। शिवानी खो चुकी है । नितिन की दोस्ती हर बीतते साल के साथ कितनी बढ़ चुकी है है ये लिखा नहीं जा सकता
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कम लोग और छोटी कंपनियाँ अक्सर वो कर दिखाते हैं जो हजारों समझदार लोगों की भीड़ नहीं कर पाती
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